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तीन दशक में दोगुनी हुई ‘सिर्फ बेटी’ की ख्वाहिश, ऐसे परिवार शिक्षित और सम्पन्न, पुत्रमोह वाले हरियाणा-पंजाब भी बदले (मुकेश कौशिक) देश की सोच में बीते कुछ अरसे में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं। इनमें सबसे अहम भारतीय परिवारों में बेटे की चाहत में गिरावट आना है। अब न ज्यादा परिवारों में हर कीमत पर बेटे की पैदाइश की जिद है और न ही ज्यादा ख्वाहिश। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज के शोध के नतीजों से समाज के भीतर आए इस बुनियादी बदलाव का संकेत मिला है। शोध की अगुवाई करने वाले मुंबई के जनसंख्या विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर हरिहर साहू के मुताबिक, 1992 से लेकर 2016 तक के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में शामिल 8 लाख 88 हजार परिवारों की 9 लाख 99 हजार विवाहित महिलाओं से हुई बातचीत को आधार बनाया गया है। ये परिवार ग्रामीण और शहरी के अलावा शिक्षा के स्तर जैसे निरक्षर, प्राथमिक, सेकंडरी और हायर एजुकेशन, धार्मिक और जातीय आधार के चार वर्गों में बंटे हुए थे। सर्वे से मिले आंकड़ों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चला है कि दो बेटियों और बिना बेटे के 33.6% घरों में परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाया गया या परिवार को इतना ही सीमित रखने का संकल्प पाया गया। तीन दशक में शोध का अहम निष्कर्ष यह है कि सिर्फ बेटियों वाले परिवार उच्च शिक्षित और आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं। बेटे की चाहत अधिक और कम वाले राज्यों में ‘डॉटर्स ओनली’ परिवारों पर यह तुलनात्मक अध्ययन किया गया। प्रो. साहू बताते हैं कि हमारे विश्लेषण में यह बात सामने आई कि 1992 में सिर्फ बेटियों वाले 16% दम्पतियों ने ही परिवार नियोजन के स्थायी विकल्प अपनाए थे। तीन बेटियां और कोई बेटा नहीं रखने वाले 20% दम्पतियों ने यह रास्ता चुना था। लेकिन 30 साल बाद यह आंकड़ा 34% तक पहुंच गया। उन महिलाओं की संख्या ज्यादा है जो एक बेटा पाने की आस पूरी हुए बिना परिवार नियोजन का स्थाई रास्ता अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं। नसबंदी कराने वाले 60% दम्पती ऐसे थे जिनके परिवार में दो बेटे हैं और बेटी एक भी नहीं है। गांवों के मुकाबले शहरों में एक बेटी परिवार 25% ज्यादा बढ़े कम शिक्षित परिवारों के मुकाबले उच्च शिक्षा वाले परिवारों में सिर्फ बेटियों तक घर को सीमित रखने की तमन्ना 1.6 से 2.2 गुना अधिक पाई गई है। शहरों के मुकाबले गांवों में रहने वाले कपल में सिर्फ बेटी तक ही परिवार को सीमित रखने की चाहत 25% कम। महाराष्ट्र, केरल और प. बंगाल के मुस्लिम परिवारों में हिंदुओं के मुकाबले सिर्फ बेटी वाले परिवार क्रमशः 26%, 35% और 37% कम पाए गए। महाराष्ट्र में एक बेटी वाले परिवार 26%, दो बेटी के परिवार 63.4% और तीन बेटी के परिवार 71.5% हैं। बेटे की चाह वाले हरियाणा में 2 बेटियों वाले परिवार 41% व पंजाब में 37% बढ़े पंजाब और हरियाणा ऐसे राज्य हैं, जिन्हें पारंपरिक आधार पर बेटों की चाहत वाले क्षेत्रों में रखा जाता है। लेकिन यहां बड़ा बदलाव दिख रहा है। पंजाब में 10 साल में एक बेटी वाले परिवार 21%, दो बेटियों वाले परिवार 37% व तीन बेटियों वाले परिवार 45% बढ़े हैं। हरियाणा में यह आंकड़ा क्रमशः 27%, 41% और 40.4% है। पंजाब में गुरदासपुर और कपूरथला जिलों में सबसे अधिक 31.8% परिवारों ने एक बेटी के बाद परिवार नियोजन अपना लिया। हरियाणा के पंचकूला में सबसे अधिक 43.4% और गुड़गांव में 41.9% ने खुद को एक बेटी पर रोक लिया। सबसे कम फतेहाबाद में 10% परिवार मिले। Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today Wish for 'only daughter' doubled in three decades, such families educated and prosperous, Haryana-Punjab with son-in-law also changed

(मुकेश कौशिक) देश की सोच में बीते कुछ अरसे में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं। इनमें सबसे अहम भारतीय परिवारों में बेटे की चाहत में गिरावट आना है। अब न ज्यादा परिवारों में हर कीमत पर बेटे की पैदाइश की जिद है और न ही ज्यादा ख्वाहिश। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज के शोध के नतीजों से समाज के भीतर आए इस बुनियादी बदलाव का संकेत मिला है।

शोध की अगुवाई करने वाले मुंबई के जनसंख्या विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर हरिहर साहू के मुताबिक, 1992 से लेकर 2016 तक के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में शामिल 8 लाख 88 हजार परिवारों की 9 लाख 99 हजार विवाहित महिलाओं से हुई बातचीत को आधार बनाया गया है। ये परिवार ग्रामीण और शहरी के अलावा शिक्षा के स्तर जैसे निरक्षर, प्राथमिक, सेकंडरी और हायर एजुकेशन, धार्मिक और जातीय आधार के चार वर्गों में बंटे हुए थे।

सर्वे से मिले आंकड़ों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चला है कि दो बेटियों और बिना बेटे के 33.6% घरों में परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाया गया या परिवार को इतना ही सीमित रखने का संकल्प पाया गया। तीन दशक में शोध का अहम निष्कर्ष यह है कि सिर्फ बेटियों वाले परिवार उच्च शिक्षित और आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं। बेटे की चाहत अधिक और कम वाले राज्यों में ‘डॉटर्स ओनली’ परिवारों पर यह तुलनात्मक अध्ययन किया गया।

प्रो. साहू बताते हैं कि हमारे विश्लेषण में यह बात सामने आई कि 1992 में सिर्फ बेटियों वाले 16% दम्पतियों ने ही परिवार नियोजन के स्थायी विकल्प अपनाए थे। तीन बेटियां और कोई बेटा नहीं रखने वाले 20% दम्पतियों ने यह रास्ता चुना था। लेकिन 30 साल बाद यह आंकड़ा 34% तक पहुंच गया। उन महिलाओं की संख्या ज्यादा है जो एक बेटा पाने की आस पूरी हुए बिना परिवार नियोजन का स्थाई रास्ता अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं। नसबंदी कराने वाले 60% दम्पती ऐसे थे जिनके परिवार में दो बेटे हैं और बेटी एक भी नहीं है।

गांवों के मुकाबले शहरों में एक बेटी परिवार 25% ज्यादा बढ़े

  • कम शिक्षित परिवारों के मुकाबले उच्च शिक्षा वाले परिवारों में सिर्फ बेटियों तक घर को सीमित रखने की तमन्ना 1.6 से 2.2 गुना अधिक पाई गई है।
  • शहरों के मुकाबले गांवों में रहने वाले कपल में सिर्फ बेटी तक ही परिवार को सीमित रखने की चाहत 25% कम।
  • महाराष्ट्र, केरल और प. बंगाल के मुस्लिम परिवारों में हिंदुओं के मुकाबले सिर्फ बेटी वाले परिवार क्रमशः 26%, 35% और 37% कम पाए गए।
  • महाराष्ट्र में एक बेटी वाले परिवार 26%, दो बेटी के परिवार 63.4% और तीन बेटी के परिवार 71.5% हैं।

बेटे की चाह वाले हरियाणा में 2 बेटियों वाले परिवार 41% व पंजाब में 37% बढ़े

पंजाब और हरियाणा ऐसे राज्य हैं, जिन्हें पारंपरिक आधार पर बेटों की चाहत वाले क्षेत्रों में रखा जाता है। लेकिन यहां बड़ा बदलाव दिख रहा है। पंजाब में 10 साल में एक बेटी वाले परिवार 21%, दो बेटियों वाले परिवार 37% व तीन बेटियों वाले परिवार 45% बढ़े हैं। हरियाणा में यह आंकड़ा क्रमशः 27%, 41% और 40.4% है।

पंजाब में गुरदासपुर और कपूरथला जिलों में सबसे अधिक 31.8% परिवारों ने एक बेटी के बाद परिवार नियोजन अपना लिया। हरियाणा के पंचकूला में सबसे अधिक 43.4% और गुड़गांव में 41.9% ने खुद को एक बेटी पर रोक लिया। सबसे कम फतेहाबाद में 10% परिवार मिले।



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